कोटद्वार। पौड़ी जिले के कोटद्वार को गढ़वाल का द्वार भी कहा जाता है और गढ़वाल के द्वार से महज दो किलोमीटर दूर खोह नदी के तट पर श्री सिद्धबली धाम लोगों की आस्था का केंद्र स्थापित है। इस मंदिर की मान्यता इतनी है कि हर समय यहां देश-विदेश से आए भक्तों का हुजूम लगा रहता है।
ऐसे तो देशभर में हनुमान जी के कई चमत्कारी मंदिर है, जहां जाने पर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मगर उत्तराखंड के पौड़ी जिले में कोटद्वार नगर से करीब दो किलोमीटर दूर, नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 534 से लगा पवित्र श्री सिद्धबली धाम (हनुमान मंदिर) का महत्व सबसे अधिक है। यह मंदिर खोह नदी के किनारे पर करीब 40 मीटर ऊंचे टीले पर स्थित है। यहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, जिनकी मनोकामना पूरी होती हैं वे भक्त भंडारा करवाते है। कहा जाता है कि यहां से कोई भक्त आज तक कभी खाली हाथ नहीं लौटा है।
सिद्धबली मंदिर की ऐसी मान्यता है कि कलयुग में शिव का अवतार माने जाने वाले गुरु गोरखनाथ को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी। जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा भी कहते है। गोरखपुराण के अनुसार, गुरु गोरखनाथ के गुरु मछेंद्रनाथ पवनपुत्र बजरंग बली की आज्ञा से त्रिया राज्य की शासिका रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ जीवन का सुख भोग रहे थे। जब गुरु गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वे अपने गुरु को त्रिया राज्य के मुक्त कराने को चल पड़े।
मान्यता के अनुसार, इसी स्थान पर बजरंग बली ने रूप बदल कर गुरु गोरखनाथ का मार्ग रोक लिया। जिसके बाद दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब दोनों में से कोई पराजित नहीं हुआ तो हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में आए और गुरु गोरखनाथ से वरदान मांगने को कहा। जिस पर गुरु गोरखनाथ ने हनुमानजी से यहीं रहने की प्रार्थना की। गुरु गोरखनाथ व हनुमानजी के कारण ही इस स्थान का नाम ‘सिद्धबली’ पड़ा। आज भी ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी प्रहरी के रूप में भक्तों की मदद के लिए साक्षात रूप से यहां विराजमान रहते हैं।