“मृत्युंजय मंत्र” एक प्राचीन वैदिक मंत्र है जो भगवान शिव को समर्पित है और जिसे अमृत संतान ध्वनि के रूप में जाना जाता है। यह मंत्र विचारशीलता, शक्ति, और आध्यात्मिकता को प्रकट करने का माध्यम है और उसका उच्चारण शांति और स्वास्थ्य की प्राप्ति में सहायक होता है।
मृत्युंजय मंत्र का पूरा रूप निम्नलिखित है:
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥”
इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ है:
– “ॐ”: परमात्मा की प्रतिनिधित्व को दर्शाने वाला शब्द।
– “त्र्यम्बकं”: वह त्रिनेत्रवाले (तीन आँखों वाले) भगवान शिव की स्तुति करते हुए।
– “यजामहे”: हम उसे यज्ञ के रूप में समर्पित करते हैं।
– “सुगन्धिं”: जिसका गंध आत्मा को पवित्रता और शक्ति की अनुभूति कराता है।
– “पुष्टिवर्धनम्”: जो आत्मा को पुष्टि और बढ़ावा देता है।
– “उर्वारुकमिव”: जैसे एक पक्षी अपने प्रियकर की ओर उड़ता है, वैसे ही हम भगवान की ओर पल्टते हैं।
– “बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय”: हमें मृत्यु के बन्धन से मुक्त करें।
– “माऽमृतात्”: उस अमृत से हमें बाहर आने दे।
यह मंत्र मान्यताओं में भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए जाना जाता है। इसका नियमित जाप करने से शरीर, मन, और आत्मा की शक्तियों में वृद्धि होती है और यह बीमारियों से बचाव और उनका उपचार करने में सहायक साबित होता है।
इस मंत्र का उच्चारण, स्वास्थ्य, शांति, और आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है। यह मंत्र आत्मा की उन्नति और शक्ति की दिशा में प्राणिक बदलाव लाने में सहायक साबित हो सकता है।
Deewan Singh
Editor